काश ऐसा होता तो कितना अच्छा होता, कि 21 दिसम्बर 2012 तक हकीकत में दुनिया ख़त्म हो चुकी होती और पूरी पृथ्वी नष्ट हो गई होती तो पूरी दुनिया (खासकर भारत जैसे देशों) से सम्पूर्ण बुराइयों का अनादि काल के लिये अंत हो जाता;
न होती कहीं पर गरीबी, न बच्चों की भुखमरी,
नहीं होता देश में भ्रष्टाचार, और न रहता कोई बेरोजगार.
न होते जातिवाद के झगडे, न नस्लवाद की हताशा,
न होते जातिवाद के झगडे, न नस्लवाद की हताशा,
नही होता बलात्कार और न रहता राजनीति का तमाशा.
काश निबिरू नामक छुद्र ग्रह पृथ्वी से आकर टकराता, काश सूर्य से सौर-तूफ़ान निकलकर पृथ्वी के चुम्बकीय प्रभाव को ख़त्म कर देती, काश मिल्की-वे का ब्लैक-होल पृथ्वी को निगल लेता, इतना भी नहीं तो काश मायाँ कैलेण्डर की भविष्यवाणी सच हो जाती और पूरी पृथ्वी में प्रलय आ जाता तो पृथ्वी से मानव जीवन ही हमेशा के लिये ख़त्म हो जाता. या तो यह पृथ्वी का दुर्भाग्य है, कि वह मानव के अन्याय को अनंत काल तक सहन करने के लिये ज़िंदा है; या फिर इस ग्रह का अदम्य साहस कि वह कलयुग से लेकर महा-कलयुग तक की क्रियाकलापों की सूक्ष्म-गवाह बनना चाहती है.
यदि भारतीय सन्दर्भ में बात की जाये तो भारत की प्राचीन संस्कृति और पौराणिक शास्त्र हिन्दू धर्म के अनुसार हमें यही बताते हैं, कि इस पृथ्वी में चार युग आते हैं; सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और अंत में कलयुग; जिसमें से तीन युग बीत चुके हैं और कलयुग में मानव जीवन चल रहा है. कलयुग के अंत में प्रलय की बात कही जाती है. सभ्यता और संस्कृति चाहे वह किसी भी देश की क्यों ना हो; महत्वपूर्ण तो होती ही है. आज से तीन वर्ष पहले हमने मध्य अमेरिका के मैक्सिको शहर की प्राचीन मायाँ सभ्यता को जाना पहचाना और इससे रूबरू हुये लेकिन इस प्राचीन मायाँ सभ्यता का प्रचार - प्रसार इस कदर प्रलयवाद के रूप में होगा; कि इसे डूबती आर्थिक मंदी के परिणित को बचाने और धन कमाने का जरिया बना लिया जायेगा यह तो सोचा भी नहीं था.
21 दिसम्बर 2012; जिसे DOOMS – DAY (दण्डाज्ञा-दिवस) की संज्ञा प्रदान की गई थी, को ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और ये धरती आज भी सदियों की तरह सलामत है, और मानव जीवन भी हमेशा की तरह चल रहा है. प्राचीन मायाँ सभ्यता के कैलेण्डर के अनुसार प्रलय की भविष्यवाणियाँ कोरी साबित हुईं लेकिन इस प्रलयवाद के प्रणेताओं ने मिलकर जबरदस्त व्यापार किया और जमकर धन कमाया. हकीकत में इस प्रलय की भविष्यवाणियों का सर्वाधिक फ़ायदा मैक्सिको देश को हुआ, इस प्रलयवाद के परिकल्पनाओं ने मेक्सिको देश के प्राचीन संस्कृति और मायाँ सभ्यता के बचे हुये अवशेषों का साक्षात्कार करने के लिये पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित किया फलस्वरूप इससे पर्यटन को जबरदस्त बढावा मिला.
कुल मिलाकर प्रलय का यह झूठा प्रचार मध्य अमेरिका को वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर से बाहर निकालने के लिये पर्याप्त था क्योंकि इन तीन वर्षों में प्रलयवाद के अनेक प्रणेताओं ने मीडिया के साथ मिलकर अरबों-खरबों का व्यवसाय करके धन कमाया और इसे अपने–अपने तरीके से प्रसिद्धी का भी जरिया बनाया. 22 दिसम्बर 2012 से प्रलय का दिन बीत जाने के बाद; मैक्सिको में जशन (सामारोह) मनाया गया और पुरानी मायाँ सभ्यता के ख़त्म हो जाने के बाद एक नये युग की शुरुआत तथा परम्परावादी तरीके से नयी सभ्यता का उदय माना गया.
1 comment:
It is wonderful Attempt to Expose the White Truth From the Darkness of Boring Doomsday Prediction.
Ku. Nisha Malhotra
From Bhopal
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